Khandit Akhyan (खंडित आख्यान)
Bharatiya Jantantra mein Adrishya Log (भारतीय जनतंत्र में अदृश्य लोग)
Price: 350.00
ISBN:
9780199487295
Publication date:
22/01/2018
Paperback
168 pages
Price: 350.00
ISBN:
9780199487295
Publication date:
22/01/2018
Paperback
168 pages
Badri Narayan
Rights: World Rights
Badri Narayan
Description
भारतीय जनतंत्र से आशा की गयी थी कि वह सबकी आवाज़ सुनेगा और इसकी बनावट में सबकी आवाज़ मिली होगी। आजादी के सात दशक बाद भी ऐसा नहीं हो सका है। अनुसूचित जातियों का एक बड़ा तबका भारतीय जनतंत्र में अपनी आवाज़ तलाश रहा है। इन तबकों के पास न तो संख्या बल है, न किताबें हैं और न ही नेता जो उनकी टूटी-फूटी आवाजों को अपने देशवासियों को सुना सकें। वे अभी भी जनतंत्र से उपजी सत्ता और उसके लाभों को दूर खड़े होकर निहार रहे हैं। हाशिये के भी हाशिये पर खड़े यह समुदाय अभी जनतंत्र के दरवाज़े को खटखटाने की हैसियत हासिल नहीं कर सके हैं।
यह किताब उस किस्से का बयान है जिसमें हज़ारों साल पुराने बहिष्करण, भेदभाव और उत्पीड़न के अनुभवों को दर्ज करने की कोशिश की गयी है। ‘खंडित आख्यान: भारतीय जनतंत्र में अदृश्य लोग’ उन अनुसूचित जातियों की दास्तान है जिन्हें मुख्यधारा के समाज विज्ञान के विमर्शों और राजनीतिक संवादों में कोई जगह नहीं मिल पायी है और यह उन नामालूम दलित नौजवानों, महिलाओं और छोटी-छोटी किताबें लिखने वाले लोगों की भी कहानी है जिन्हें भारत की चुनावी राजनीति एवं विकास कार्यक्रमों में लगातार उपेक्षा सहनी पड़ी है।
About the Author
बद्री नारायण गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में सामाजिक इतिहास और सांस्कृतिक मानवविज्ञान के प्रोफेसर और निदेशक हैं।
Badri Narayan
Description
भारतीय जनतंत्र से आशा की गयी थी कि वह सबकी आवाज़ सुनेगा और इसकी बनावट में सबकी आवाज़ मिली होगी। आजादी के सात दशक बाद भी ऐसा नहीं हो सका है। अनुसूचित जातियों का एक बड़ा तबका भारतीय जनतंत्र में अपनी आवाज़ तलाश रहा है। इन तबकों के पास न तो संख्या बल है, न किताबें हैं और न ही नेता जो उनकी टूटी-फूटी आवाजों को अपने देशवासियों को सुना सकें। वे अभी भी जनतंत्र से उपजी सत्ता और उसके लाभों को दूर खड़े होकर निहार रहे हैं। हाशिये के भी हाशिये पर खड़े यह समुदाय अभी जनतंत्र के दरवाज़े को खटखटाने की हैसियत हासिल नहीं कर सके हैं।
यह किताब उस किस्से का बयान है जिसमें हज़ारों साल पुराने बहिष्करण, भेदभाव और उत्पीड़न के अनुभवों को दर्ज करने की कोशिश की गयी है। ‘खंडित आख्यान: भारतीय जनतंत्र में अदृश्य लोग’ उन अनुसूचित जातियों की दास्तान है जिन्हें मुख्यधारा के समाज विज्ञान के विमर्शों और राजनीतिक संवादों में कोई जगह नहीं मिल पायी है और यह उन नामालूम दलित नौजवानों, महिलाओं और छोटी-छोटी किताबें लिखने वाले लोगों की भी कहानी है जिन्हें भारत की चुनावी राजनीति एवं विकास कार्यक्रमों में लगातार उपेक्षा सहनी पड़ी है।
About the Author
बद्री नारायण गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में सामाजिक इतिहास और सांस्कृतिक मानवविज्ञान के प्रोफेसर और निदेशक हैं।
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