पवित्र गाय का मिथक
Price: 595.00
ISBN:
9780190124274
Publication date:
20/04/2022
Paperback
210 pages
Price: 595.00
ISBN:
9780190124274
Publication date:
20/04/2022
Paperback
210 pages
डीएन झा
Rights: World Rights
डीएन झा
Description
इन दिनों गा्य एक राजनीतिक शब्द बन गया है। दक्षिणपंथी राजनीतिक के उभार ने भारतीय समाज में गा्य को दशयत का पर्याय बना दिया है। हाल के वर्षों में गा्य के नाम पर कई हमले और हत्याएँ हुई हैं। भारतीय समाज में गा्य एक जानवर के रूप में पहले भी महत्व रखती थी। किसी समाज के जीवन का वह अहम समाज हिस्सा रही है। खेती के लिए वह बहुत उपयोगी रही है। लेकन अब वह एक डर बना दी गई है। डीएन झा ने अपनी इस किताब में मिथकीय सन्दर्भो के जरिये के गा्य महत्व को लिखा है। अलग-अलग सम्प्रदायों में गा्य के मांसाहार पर चर्चा की गए है।
आर्य, बुद्ध, और जैन समुदायों के मिथक यह बताते हैं कि गाय का मांसाहार कभी वर्जित नहीं था। बल्कि उसे स्वादिस्ट माना जाता था। पुराने धार्मिक और मिथकीय ग्रन्थों के सहारे डीएन झा खान-पान की उस राजनीति को सामने लाते हैं जो सांप्रदायिकता में तब्दील कर दी गई है।
यह किताब मिथकों के संदर्भों से भारतीय समाज में गाय के उपयोग का मुकम्मल इतिहास है।
डीएन झा, प्राचीन भारत और मध्यकालीन भारत के एक जानेमाने इतिहासकार हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं।
डीएन झा
Table of contents
पशु वसतुतः भोजन हैं’ लेकिन यज्ञवल्कय गोमांस को प्राथमिकता देता है
पशु बली की अस्वीकृति : गाय की पवित्रता की प्रतिष्ठा?
उत्तरधर्म शास्त्रीय परंपरा और आगे
कलयुग में गाय की स्थिति और गोमांसाहार की स्मृतियाँ
एक विरोधाभासपूर्ण पाप और गाय की स्थिति का विरोधाभास
सारांश : ‘पवित्र गाय’ की निषफल तलाश
डीएन झा
Description
इन दिनों गा्य एक राजनीतिक शब्द बन गया है। दक्षिणपंथी राजनीतिक के उभार ने भारतीय समाज में गा्य को दशयत का पर्याय बना दिया है। हाल के वर्षों में गा्य के नाम पर कई हमले और हत्याएँ हुई हैं। भारतीय समाज में गा्य एक जानवर के रूप में पहले भी महत्व रखती थी। किसी समाज के जीवन का वह अहम समाज हिस्सा रही है। खेती के लिए वह बहुत उपयोगी रही है। लेकन अब वह एक डर बना दी गई है। डीएन झा ने अपनी इस किताब में मिथकीय सन्दर्भो के जरिये के गा्य महत्व को लिखा है। अलग-अलग सम्प्रदायों में गा्य के मांसाहार पर चर्चा की गए है।
आर्य, बुद्ध, और जैन समुदायों के मिथक यह बताते हैं कि गाय का मांसाहार कभी वर्जित नहीं था। बल्कि उसे स्वादिस्ट माना जाता था। पुराने धार्मिक और मिथकीय ग्रन्थों के सहारे डीएन झा खान-पान की उस राजनीति को सामने लाते हैं जो सांप्रदायिकता में तब्दील कर दी गई है।
यह किताब मिथकों के संदर्भों से भारतीय समाज में गाय के उपयोग का मुकम्मल इतिहास है।
डीएन झा, प्राचीन भारत और मध्यकालीन भारत के एक जानेमाने इतिहासकार हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं।
Table of contents
पशु वसतुतः भोजन हैं’ लेकिन यज्ञवल्कय गोमांस को प्राथमिकता देता है
पशु बली की अस्वीकृति : गाय की पवित्रता की प्रतिष्ठा?
उत्तरधर्म शास्त्रीय परंपरा और आगे
कलयुग में गाय की स्थिति और गोमांसाहार की स्मृतियाँ
एक विरोधाभासपूर्ण पाप और गाय की स्थिति का विरोधाभास
सारांश : ‘पवित्र गाय’ की निषफल तलाश
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